महर्षि प्रवाह

श्री गुरुदेव की कृपा का फल
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ब्रह्मचारी गिरीश जी
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महर्षि जी ने वेद, योग और ध्यान साधना के प्रति जन-सामान्य में बिखरी भ्रान्तियों का समाधान कर उनको दूर किया। वैदिक वांङ्गमय के 40 क्षेत्रों- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष, निरुक्त, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त, कर्म मीमांसा, योग, गंधर्ववेद, धनुर्वेद, स्थापत्य वेद, काश्यप संहिता, भेल संहिता, हारीत संहिता, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट संहिता, भावप्रकाश संहिता, शार्ङ्गधर संहिता, माधव निदान संहिता, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण, स्मृति, पुराण, इतिहास, ऋग्वेद प्रातिशाख्य, शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य, अथर्ववेद प्रातिशाख्य, सामवेद प्रातिशाख्य (पुष्प सूत्रम्), कृष्ण यजुर्वेद प्रातिशाख्य (तैत्तिरीय), अथर्ववेद प्रातिशाख्य (चतुरध्यायी) को एकत्र किया, उन्हें सुगठित कर व्यवस्थित स्वरूप दिया और वेद के अपौरुषेय होने की विस्तृत व्याख्या की।


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 श्री गुरुदेव की कृपा का फल

अजेय शक्ति का उपयोग- 'भारत अजेयता की स्थिति में समस्त राष्ट्रों को अजेय बनायेगा। यह वह कार्यक्रम है जिसे हमें भारत को विश्व में सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित करने के साधन के रूप में अभिकल्पित करना है। इसके लिए हम उस ज्ञान का उपयोग करना चाहते हैं जो सृष्टि के अव्यक्त क्षेत्र-प्रत्येक की आत्मा में प्रकृति की अजेय शक्ति के रूप में विद्यमान है, यह वेद क्षेत्र है एवं वह क्षेत्र है जिसकी झलक आधुनिक विज्ञान ने दिखाई है। हम केवल इतना कह सकते हैं कि आधुनिक विज्ञान ने अभी केवल इसकी झलक दिखलाई है क्योंकि आधुनिक विज्ञान वस्तुनिष्ठ मार्गी है एवं शुद्ध बुद्धिमत्ता का क्षेत्र-वेद है, जो कि प्राकृतिक विधानों के अजेय गुण वाला शुद्ध आत्मनिष्ठ क्षेत्र है। आधुनिक विज्ञान ने इसे सृष्टि के अव्यक्त शाँतिपूर्ण आधार में आत्मपरक, आत्मसंवादी गतिशीलता के रूप में- समत्व योग की शाँति में-भावातीत चेतना की शाँति के रूप में समझाया है।

इसलिए आज आधुनिक विज्ञान से सैद्धांतिक रूप से एवं हमारे वैदिक विज्ञान से सैद्धांतिक व व्यवहारिक दोनों रूप से हमारे पास वह ज्ञान है और प्रकृति के विधानों में अन्तर्निहित अजेय शक्ति है, जिसे हम भारत को विश्व में सर्वोच्च शक्ति बनाने के लिए प्रयोग क र सकते हैं। हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि जब हम कहते हैं कि भारत को विश्व में सर्वोच्च शक्ति बनाना चाहते हैं तब हम उस स्तर से बोल रहे होते हैं जहाँसमस्त राष्ट्र हमारे प्रिय विश्व परिवार का सदस्य होते हैं, सार्वजनिकता के उस अर्थ से जो कि भारतीय जीवन की विशेषता है।
भारतीय जीवन की विशेषता ब्रह्मांडीय व्यक्तित्व- 'अहं ब्रह्मास्मि' सर्वोच्च आत्मा है। भारतीय जीवन की वास्तविकता के उस स्तर से एवं समस्त राष्ट्रों के जीवन की समझ के उस स्तर से हम एक कार्यक्रम की अभिकल्पना करने जा रहे हैं, जिससे प्रकृति के विधानों के अजेय स्तर का उपयोग करके समस्त देशों की राष्ट्रीय चेतना में अजेय शक्ति की उस लहर को उत्पन्न किया जाये।?


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