अनुक्रमणिका
पृष्ठ क्र. 6

हजारों वर्षों से तुरीय चेतना या समाधि या भावातीत सत्ता अत्यन्त कठिन मानी गई और नाना प्रकार की युक्तियों के द्वारा कठिन बताई गयी। ये गुरुदेव का प्रताप था प्रत्यवायो न विद्यते, ये गुरुदेव का प्रताप था कि अभिक्रम सबके लिए सुगम हो गया। योग का अभिक्रम सबके लिए सुगम हो गया और जब लाखों-लाखों आदमी सारे विश्व में भावातीत होने लगे और फिर हजारों-हजारों आदमी जब भावातीत चेतना में स्पन्दन देने की योग्यता पाने लगे, स्पन्दन देने लगे, सिद्धियों का अनुभव होने लगा।...
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पृष्ठ क्र. 8

व्यक्तिगत भौतिक संग्रहण के साये में लोकसेवा नहीं हो सकती और उस अवस्था में अहंकार का बढ़ना कोई रोक नहीं पाता। ऐसी स्थिति में जीवन में शालीनता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व बोध स्वार्थ के बोझ तले दब जाता है। भारत के अधिकांश राजनीतिक दल इसमें उलझ चुके हैं। कुछ नेताओं और नेता-संतति की भाषागत अशालीनता उनकी सत्ता पाने की व्याकुलता और व्यग्रता को ही प्रदर्शित करती है। राहुल गांधी का उदाहरण हमारे सामने है। गत दिनों अदालत ने उन्हें एक समुदाय के खिलाफ अनुचित भाषा के प्रयोग का दोषी माना। इसके लिए उन्हें सजा सुनाई।...
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पृष्ठ क्र. 10

दूसरों के दोषों को तो हम बढ़ा-चढ़ा कर देखते भी हैं और कहते भी हैं किन्तु अपने दोषों और भूलों को देखना तक नहीं चाहते हैं। जब हमारी ऐसी आदत होगी तब हम गुण ग्राहकता के बारे में चिन्तन ही नहीं कर सकेंगे। गुणों को अपने व्यक्ति में लाने के लिए सबसे पहले दूसरों के दोषदर्शन एवं छिद्रान्वेषी यानी छोटी से छोटी कमी को खोजने की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा।
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पृष्ठ क्र. 44

यह एक आम किंतु प्रमुख शिष्टाचार है जो बच्चों को सबसे पहले सिखाना चाहिए। बचपन से ही ?प्लीज या कृपया? और ?थैंक यू या धन्यवाद? कहने का महत्व बताएँ। बताएँ कि जब हम किसी से कुछ पूछते या विनती करते हैं, तो उस समय निवेदन के रूप में प्लीज कहना चाहिए और किसी की सहायता लेने पर या कोई भी चीज लेते समय थैंक यू कहना चाहिए। अगर अभिभावक बच्चे से स्वयं कुछ लेने पर थैंक यू और निवेदन करते हुए प्लीज कहेंगे तो वह स्वयं इसे अपना लेगा।...
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