अनुक्रमणिका
पृष्ठ क्र. 6

मन ज्यादा-ज्यादा चाहता हुआ सर्वत्र भ्रमण कर रहा है। ज्यादा चाहिये ज्ञान ज्यादा-ज्यादा चाहिये हर चीज ज्यादा चाहिए। जैसे भाव की सूक्ष्मता में जाता है, ज्यादा से ज्यादा अनंत आनन्द के क्षेत्र के निकट जाता है, आनन्द के खोजी मन को आनन्द सागर में जाने के लिए कोई भी वस्तु नहीं चाहिये कु छ नहीं चाहिये खाली उसका अभिक्रम प्रारम्भ होना चाहिए।...
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पृष्ठ क्र. 8

निस्संदेह, इससे उस संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जिनको आज कम सीट होने के कारण बढ़िया कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल पाता, पर हालात आज से बेहतर होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि वे संयोगवश चूक गए, जबकि आज उनके मन में अयोग्य होने संबंधी धारणा घर कर जाती है। वैसे, इस मसले का असली हल तभी संभव है।...
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पृष्ठ क्र. 10

हम अपने जीवन में आत्मनिर्देश का प्रयोग तो यदा-कदा ही कर पाते हैं किन्तु बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हम दूसरों के निर्देशों और उनकी आज्ञा का ही पालन करते हैं, कभी मन से तथा कभी बेमन से। बचपन में हम अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहन, परिजन, विद्यालय के गुरुजन, समाज के वरिष्ठ जन, कार्यस्थल पर अधिकारी व सहयोगी तथा आध्यात्मिक गुरु से निर्देश पाते हैं।...
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पृष्ठ क्र. 12

अपने जीवन में अच्छे विचारों और धन्यवाद की भावना को स्थान दें। इससे आपको न मात्र तनाव से लड़ने में सहायता मिलेगी, बल्कि अपने जीवन के सकारात्मक पहलुओं पर गौर करने का भी अवसर मिलेगा। इसका अर्थ चुनौतियों को नजरअंदाज करना नहीं।....
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पृष्ठ क्र. 44

आज की माँ अपनी जड़ों से जुड़ी है, पर वह बदलते समय के साथ बदलना और बहना भी जानती है। वह परंपरा के साथ - साथ नई दुनिया की टेक्नोलॉजी के बल पर दुनिया भर में हो रहे परिवर्तनों से भी अपने बच्चों को रूबरू करवा रही है। वो माँ गिल्ट को प्रतिदिन पछाड़ कर आॅफिस जाती है।...
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