आवरण कथा
‘ सोशल मीडिया में अपनी छवि बनाए रखने या दूसरों को दिखाने के लिए भला उधार कौन लेता है? बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न आए, किंतु यह सच है कि आज की पीढ़ी के कुछ युवा ऐसा कर रहे हैं। वे अपना शौक पूरा करने या सोशल मीडिया की शोशेबाजी के लिए कर्ज ले रहे है चाहे उसके लिए उनको क्रेडिट कार्ड से ही कर्ज क्यों न लेना पड़े। अब बेंगलुरु की 23 वर्षीय एक मार्केटिंग पेशेवर को ही ले लीजिए, जो पिछले दिनों प्रसिद्ध गायक और एक्टर दिलजीत दोसांझ के कॉन्सर्ट का टिकट खरीदने का प्रयास कर रही थीं, जिसकी कीमत 3,000 के लगभग थी। जब तक वो उसे खरीदतीं, वे मिनटों में बिक गए। चूँकि उनको अपने मित्रों के मध्य दिखाना था, इसलिए उन्होंने बिना पलक झपकाए अपने क्रेडिट कार्ड से वीआईपी सेक्शन में 15 हजार रुपये का एक टिकट बुक किया। यह राशि बड़ी तो थी, किंतु उनका मानना था कि शो पर उसकी इंस्टाग्राम पोस्ट सब कुछ सार्थक बना देगी। ’’

सनातन धर्म में ऋण का विचार एक व्यापक नैतिक और आध्यात्मिक अवधारणा है जो हमें अपने प्रति, दूसरों के प्रति, और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है। शब्द का अर्थ है 'कर्ज' या 'दायित्व'। यह मात्र आर्थिक कर्ज नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक, नैतिक और सामाजिक दायित्व भी सम्मिलित हैं। जन्म से ही मनुष्य तीन मुख्य ऋणों के साथ जन्म लेता है: देव ऋण (देवताओं का), ऋषि ऋण (ऋषियों और ज्ञान का), और पितृ ऋण (पूर्वजों का)। सनातन धर्म में ऋण के प्रकार: देव ऋण: यह देवताओं के प्रति आभार और सम्मान का ऋण है, जो हमें प्रकृति और जीवन की देन के लिए चुकाना होता है। ऋषि ऋण: यह ऋषियों और ज्ञान के प्रति सम्मान का ऋण है, जो हमें ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। पितृ ऋण: यह पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का ऋण है, जिन्होंने हमें जीवन दिया और हमारा पालन-पोषण किया। मनुष्य ऋण/भूत ऋण: कुछ ग्रंथों में मनुष्य और प्रकृति के प्रति भी ऋण का उल्लेख है, जिसे हमें मानवता और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाकर चुकाना होता है। ऋण चुकाने का महत्व: सनातन धर्म में ऋणों को चुकाना एक महत्वपूर्ण कर्तव्य माना जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक माना गया है। देव ऋण: यज्ञ, पूजा, और धार्मिक कृत्यों के माध्यम से चुकाया जाता है। ऋषि ऋण: ज्ञान प्राप्त करके और दूसरों को ज्ञान देकर चुकाया जाता है। पितृ ऋण: संतानोत्पत्ति, धार्मिक संस्कार और माता-पिता की सेवा करके चुकाया जाता है। मनुष्य ऋण: दूसरों के साथ सम्मान और प्रेम से पेश आकर, और उनकी मदद करके चुकाया जाता है। भूत ऋण: प्रकृति की रक्षा करके, पेड़ लगाकर, और प्राणियों के प्रति दया भाव रखकर चुकाया जाता है।
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