आवरण कथा
‘ संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून है जो सरकार की संरचना, शक्ति और कर्तव्यों के साथ - साथ् के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है। यह एक लिखित दस्तावेज हैजो देश के शासन के मूलभूत सिद्धांत और नियम तय करता है, और यह सुनिश्चित करता है किस भी कानूनों और सरकारी कार्यों को संविधान की भावना के अनुरूप होना चाहिए। ’’
योग्यता तथा निष्पक्षता का आयु से कोई
संबंध नहीं है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति का निर्णय राज्य
परिषद् करे, यह ठीक नहीं।
न्यायाधीश भविष्य में अपने आचरण के
संबंध में सावधान रहेंगे।
अध्यक्ष महोदय, न्यायपालिका को बूढ़े
लोगों के ज्ञान तथा अनुभव से बहुत लाभ होगा।
मुझे यह ज्ञात है कि वेतन आयोग ने निवृत्ति
आयु को बढ़ाने की सिफारिश की है। मैं नहीं
जानता कि सरकार ने इस संबंध में कौन सा
कदम उठाया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि
प्रशासन की दृष्टि से इस कदम से नवयुवकों के
उन्नति के मार्ग में बाधा पहुँचेगी, किंतु यह
कहना कि साठ वर्ष का आदमी पागल हो जाता
है, एक अनर्गल बात है। मैं जानता हूँ कि दो
न्यायाधीश अंधे हो जाने पर भी न्यायालय में
टाइप की सहायता से कार्य करते रहे और वे दो
न्यायाधीश इस देश के सर्वोत्तम न्यायाधीशों में
से थे। आखिर न्यायाधीशों में तो योग्यता तथा
निष्पक्षता अपेक्षित है और उनके संबंध में आयु
का कोई महत्व नहीं है।...
जहाँ तक प्रोफेसर शाह के संशोधन का संबंध है, वे यह चाहते हैं कि न्यायाधीशों की नयुक्ति के प्रश्न का निर्णय राज्य परिषद् करे। मैं इसका पूरे जोर से विरोध करता हूँ। हमें निष्पक्ष तथा स्वाधीन न्यायाधीशों की आवश्यकता है और यदि आप इस प्रश्न के निर्णय का अधिकार राज्य परिषद् को सौंप देंगे, तो लोग अपनी-अपनी नियुक्ति के लिए प्रयास करेंगे और योग्यता आदि की
उपेक्षा की जाएगी।... आखिर हमारा प्रधानमंत्री एक उत्तरदायी व्यक्ति होगा ही।... यह सच है। वे
अपनी पसंद के लोगों को नियुक्त कर सकते हैं और पक्षपात भी कर सकते हैं, परन्तु हमें भी उनके
कार्यों पर मत देने का अधिकार होगा। आप इस प्रश्न का निर्णय 150 या इससे अधिक लोगों की
परिषद् से नहीं करवा सकते।... मुझे इसका आश्चर्य है कि इस संशोधन को प्रोफेसर शाह जैसे
व्यक्ति ने पेश किया है।
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