आवरण कथा
‘ दीपावली अर्थात नन्हे-नन्हे दीपकों का उत्सव। रोशनी के नन्हे-नन्हे बच्चों का उत्सव! 'जब सूर्य-चंद्र अस्त हो जाते हैं तो मनुष्य अंधकार में अग्नि के सहारे ही बचा रहता है।' 'छान्दोग्य उपनिषद्' के ऋषि का यह बोध हमारे दैनिक अनुभव के मध्य होता है। एक-एक नन्हा दीपक सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतिनिधि बनकर हमारे घरों में रोज अपनी देवोपम भूमिका निभाता है। उसकी देह भले ही पार्थिव धातु की हो, परंतु है वह वस्तुत रोशनी की प्रजा। प्रजा से हमारा तात्पर्य संतान से है और गाँव-गाँव, नगर-नगर अपनी दैदीप्यमान भूमिका में प्रतिष्ठित असंख्य दीप-शिखाएँ उस रोशनी की असंख्य प्रजाएँ हैं, जो सूर्य, सोम और अग्नि तीनों में निहित व्यापक देवशक्ति के रूप में सृष्टि की प्रथम उषा के साथ सक्रिय हैं। रोशनी एक भगवती शक्ति है। इसका संस्कृत रूप है- 'रोचना।' ईरानी 'रोशनी' और संस्कृत 'रोचना' के मूल में ही हिंदी आर्य- ध्वनिखंड है, जो मूलत दीप्ति या द्युति से जुड़ा है। रोशनी के भगवती-शक्ति होने के कारण ही 'ललितासहस्रनाम' में देवी का एक नाम 'रोचना' भी है। स्वयं में 'देवी' शब्द का अर्थ ही होता है- 'दैदीप्यमान।' ’’

जीवनमात्र के कल्याण हेतु सनातन
ऋषियों ने निरंतर प्रयास किए, जिसके कारण
मानव सभ्यता ने ब्रह्मांड की ऊँचाइयों को स्पर्श
किया है। मनुष्य के सौभाग्य एवं स्वास्थ्य के
लिए ब्रह्मांड की ऊर्जाओं से मानव जीवन का
तारतम्य बनाने के लिए आयुर्वेद, ज्योतिष,
योगशास्त्र इत्यादि के सम्मिलन से सौभाग्य में
वृद्धि के अनेक प्रयोग इन महान ऋषियों ने
किए। दीपावली का पंचदिवसीय प्रयोग इसी
शृंखला की एक अभूतपूर्व, अप्रतिम उपलब्धि
है।
दीपपर्व के पाँच दिनों में योग शास्त्र, ज्योतिष और तंत्रशास्त्र के विभिन्न प्रयोग हमारी
ऊर्जाओं को उच्चतर स्तर पर ले जाने का
प्रयास करते हैं। इन प्रयोगों में साधना के रूप में
जनसाधारण के लिए सरलता से संभव
दिशानिर्देश दिए गए हैं। माध्यम के रूप में
रंगोली-मांडणा आकृति, दीप विज्ञान,
उल्कादान, शुद्धि प्रक्रियाएँ, विशेष प्रकार की
धातुओं की पूजा तथा ध्यान इत्यादि का प्रयोग
किया जाता है। इसमें एक शक्तिशाली प्रयोग
पंचाग्नि रंगोली के विज्ञानसम्मत प्रयोग का एक प्रभावशाली भाग है।
पाश्चात्य विज्ञान साइमेटिक्स प्रक्रिया में सिद्ध कर चुका है कि ध्वनि तरंगें
विभिन्न आकार उत्पन्न कर सकती हैं।
यही रंगोली का विज्ञान है कि हम मांडणा द्वारा सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।
सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत- प्रथम दिवस अर्थात् धनवंतरि त्रयोदशी। धनवंतरी जो कि
विष्णु का अवतार हैं, मूर्त रूप में स्वास्थ्य के देवता हैं। इनकी पूजा अच्छे स्वास्थ्य को आकर्षित
करने का सशक्त माध्यम है। इसी दिन भवन के चक्रों की शुद्धि हेतु प्रदोष काल में मुख्य द्वार पर
चावल की ढेरी पर तिल के तेल से भरा चैमुखी दीप प्रज्जवलित करने का प्रावधान है। यह प्रयोग
भवन के माध्यम से आपके अन्नमय तथा प्राणमय कोश को भी ऊर्जावान बनाता है।
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