आवरण कथा

ज्ञान अनुभव की अनुभूति

‘सामान्यत: ज्ञान का अर्थ जानना, ज्ञात होना आदि के संबंध में लिया जाता है। ज्ञान को प्रकाशमय माना गया है। ज्ञान का स्वरूप है किसी वस्तु को प्रकाशित करना। जिस प्रकार दीपक निकटस्थ वस्तु को प्रकाशित करता है उसी प्रकार ज्ञान भी वस्तु को प्रकाशित करता है। इस ज्ञान को ईश्वर-प्रदत्त अर्थात् सत्य प्रदत्त माना गया है। सत्य और ज्ञान एक ही वस्तुयें हैं। ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज, संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है।’’

ज्ञान अनुभव की अनुभूति

ज्ञान की शास्त्रीय परिभाषा- ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज, संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अतिरिक्त समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांतत: सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत- प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है। स्वाभाविक और सहज शब्दों में हम ज्ञान को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं ?अनुभव की अनुभूति ही ज्ञान कहलाता है।?
ज्ञान और आत्मज्ञान क्या है? और ये ज्ञान से कैसे अलग है? शायद ये साधकों द्वारा सबसे अधिक बार पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है। क्या आध्यात्मिक अभ्यास ज्ञान दे सकते हैं? भारत में आत्म-बोध को प्राप्त हुए मनुष्य द्विज कहलाते आए हैं, द्विज का अर्थ है दो बार जन्म पाने वाला। एक बार आप अपनी माता के गर्भ से जन्म पाते हैं; जो कि अचेतन रूप से होता है। आप इसे स्वयं नहीं करते- प्रकृति आपके लिए ऐसा करती है। जब आपका जन्म हुआ था तो आप एक निश्चित प्रकार की मासूमियत और आनंदी स्वभाव के साथ जन्मे थे। एक बालक स्वभाव से आनंदी और निश्चल होता है। परंतु यह भाव जागरूकता से नहीं प्राप्त हुआ है, इसलिए इसे कोई भी नष्ट कर सकता है, वे इसे पल भर में आपसे छीन सकते हैं। आप में से कुछ लोगों से तो इसे 12 या 13 वर्ष की आयु में छीन लिया गया था। कई लोगों से इसे 5 या 6 वर्ष की आयु में ही ले लिया गया था। बच्चे आजकल छह वर्ष की आयु में तनावग्रस्त हो रहे हैं, क्योंकि उनकी निश्चलता नष्ट हो जाती है। ये निश्चलता किस हद तक नष्ट होगी, ये उनके आसपास के लोगों द्वारा उन पर डाले जा रहे प्रभाव पर निर्भर करता है।


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