आवरण कथा

मन चंगा तो कठौती में गंगा

‘जहाँ आवश्यकता कम है वहाँ सत्य, अहिंसा, हिंसा, चोरी, आदि बातों की आवश्यकता ही नहीं इसलिये मानव का प्रारंभिक जीवन सतयुग था। जैसे-जैसे आवश्यकता बढ़ी, त्रेता यानी और इच्छा, जैसे-जैसे इच्छा बढ़ती गई, विकार भी बढ़ते गए और उसके काट में आदर्श भी बनाये गए। कलयुग में चरम पर इच्छा है तो सारे विकार भी अधिक है और उनके विरुद्ध अच्छे विचार भी बहुत लिखे जा रहे हैं। भगवान की प्रारंभिक उपस्तिथ जीव के प्रति उपकार की भावना से उपजी अधिक लगती है।’’

मन चंगा तो कठौती में गंगा

हले हम कर्म का अर्थ तो समझ लें। कर्म क्या है? किसी प्रतिफल की इच्छा से किया गया कार्य। अगर व्यक्ति कर्म निष्काम भाव से यानी बगैर किसी इच्छा के या प्रतिफल के करने लगे तो वह व्यक्ति स्थिरप्रज्ञ होता है और ऐसा व्यक्ति लाखों में एक ही बन पाता है।
भगवान कृष्ण ने गीता में निष्काम भाव से कर्म करने को कहा, लेकिन क्या कोई निष्काम भाव से कर्म करता है। व्यक्ति पूजा-पाठ भी कर्म की तरह ही करता है। भगवान को भोग लगाना, उसकी स्तुति करना, हम क्यों करते हैं। कुछ मन में पाने की चाहत। अर्थात् चाहत से कोई कार्य किया जा रहा है वह कर्म ही है चाहे पूजा ही क्यों नहीं।
राम अवतार या कृष्ण अवतार में भगवान ने कर्म करने को ही कहा है। उसी अनुसार व्यक्ति को फल देने का अधिकार उसके ऊपर छोड़ने को कहा।
कर्म का फल कब मिलेगा, कैसे मिलेगा यही प्रारब्ध है और उसी प्रारब्ध वश व्यक्ति सुख और दु:ख भोगता है जिसको हम कर्मों का फल कह देते है किंतु कर्म फल की अनिश्चितता ही हमें भगवान की ओर मोड़ देती है।
अब आपके प्रश्न पर आते हैं जब कर्म से ही फल मिलता है तो पूजा पाठ का क्या लाभ। कर्मयोगी कर्म करता है और उसको भगवान को अर्पित कर देता है तथा पूजा के रूप में चाहे वह मन्दिर में आरती करे, ध्यान करे या दीन दु:खी की सेवा करे यह पूजा के विभिन्न रूप में भगवान को याद करना है। भगवान से प्रार्थना करना कि आपने मुझे इस लायक बनाया जिससे मैं यह कर्म कर पाया। यह एक तरह से भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रगट करना है।
कहते हैं मनुष्य योनी ही कर्म की योनी है। बाकी अन्य जन्म यथा पशु, पक्षी और जलचर जीव भोग के लिये है। मनुष्य योनी में ही हम भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं। उसको मन, वचन और कर्म से कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं।
फिर हमें हमारे प्रारब्ध का पता नहीं। कल क्या होने वाला है। व्यक्ति इस स्थिति में भगवान से अपने अच्छे भविष्य की कामना करता है। ज्ञानीजन मोक्ष की कामना करता है। कइयों को भगवान के दरबार में मन को शांति मिलती है। आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है इसलिये वह भगवान की शरण में चला जाता है।


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