संपादकीय

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ब्रह्मचारी गिरीश
संरक्षक संपादक

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तुलसीदास जी ने जब वाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया तब एक भक्त के रूप में तो उन्होंने पाया कि मेरे प्रभु श्रीराम तो सर्वव्यापी हैं और सर्वसुलभ हैं तो फिर उनकी कथा भी सर्वव्यापी और सरल होनी चाहिए और उनको "श्री रामचरितमानस" का विचार आया होगा और यह भी माना जाता है कि जब इस विचार का जन्म भक्त तुलसीदास जी के मन में आया तो उन्होंने यह भी सोचा कि वाल्मीकि जी ने जो देखा और अनुभव किया उसको लिपिबद्ध कर दिया। किंतु मैं उसी रचना के आधार पर मेरे प्रभु श्रीरामजी के चरित को सर्वसुलभ कैसे कर पाऊँगा क्योंकि न तो मैं इतना ज्ञानी हूँ और न ही मैं, मेरे प्रभु के जीवन को जान पाया हूँ, ऐसे में ज्ञानियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भगवान श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमान जी ने कृपा की और ऐसी मान्यता है कि रामायण से प्रेरित होकर तुलसीदास जी कुछ लिखते थे तो पवनपुत्र हनुमानजी उनकी त्रुटियों को दूर करते थे तब जाकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन चरित पर "श्री राम चरितमानस" जैसे ग्रंथ का निर्माण संभव हो सका,


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राम का स्पर्श

सनातन संस्कृति में ऐसी अनेक कहानियाँ, जिन्हें आधुनिक समय में समझना कठिन नहीं है। जैसे ब्रह्मपुराण में पंचकन्याओं का वर्णन है; लिखा है, उनके नित्य स्मरण से पापों का नाश होता है। ये पाँच कन्याएँ हैं- अहिल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, मंदोदरी। इन सारी स्त्रियों के चरित्र को देखें, तो बहुत ही अलग हैं। इनमें कोई समानता नहीं है। इन सब में अहिल्या की कहानी विलक्षण है। वह अपूर्व सुंदरी थीं, वृद्ध गौतम ऋषि से ब्याही गई। एक दिन उन्हें अकेली पाकर इन्द्र गौतम का रूप धारण कर उनके पास आए और उनसे प्रेम किया। यह जानकर गौतम ने अहिल्या को श्राप दिया कि वह पत्थर बनकर जंगल में तब तक पड़ी रहेंगी, जब तक प्रभु श्रीराम आकर उन्हें मुक्त नहीं करते। वो श्रीराम के स्पर्श मात्र से जीवित हो पाएगी, जब तक श्रीराम न मिलें, तब तक पत्थर ही रहती है। किसी और का स्पर्श उसे जड़ ही छोड़ जाएगा। कहानी का मर्म इतना ही है कि प्रत्येक की अपनी प्रतीक्षा है और एक विशेष क्षण आए बिना वह पूरी नहीं होती। देखा जाए तो हम सभी प्रभु श्रीराम के स्पर्श की राह देख रहे हैं। जैसे तुलसी दास जी को उनकी पत्नी ने झकझोरा और कहा कि तुम श्रीराम को प्रेम करो, उन में मन लगाओ। तो उन्होंने इसी प्रेरणा से रामचरितमानस की रचना की जो कि महर्षि वाल्मीकि की "रामायण" पर आधारित थी। महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम के जीवन पर रामायण की रचना की वह उनके गुरु तुल्य थे और उन्होंने अपने एक श्रेष्ठ शिष्य के समस्त गुणों की व्याख्या कि जो कि संस्कृत भाषा में लिखी गई थी। रामचरितमानस अत्यधिक लोकप्रिय हुई और संभवत: प्रत्येक रामभक्त के पास तुलसीकृत "रामचरितमानस" की प्रति अवश्य होगी किंतु वाल्मीकि रचित 'रामायण' की नहीं, क्योंकि समय-काल-परिस्थितियों उसके अनुरूप महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा में की यह उस समय के अनुसार लिखी गई। इसी प्रकार तुलसीदास जी ने जब वाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया तब एक भक्त के रूप में तो उन्होंने पाया कि मेरे प्रभु श्रीराम तो सर्वव्यापी हैं और सर्वसुलभ हैं तो फिर उनकी कथा भी सर्वव्यापी और सरल होनी चाहिए और उनको "श्री रामचरितमानस"का विचार आया होगा और यह भी माना जाता है कि जब इस विचार का जन्म भक्त तुलसीदास जी के मन में आया तो उन्होंने यह भी सोचा कि वाल्मीकि जी ने जो देखा और अनुभव किया उसको लिपिबद्ध कर दिया। किंतु मैं उसी रचना के आधार पर मेरे प्रभु श्रीरामजी के चरित को सर्वसुलभ कैसे कर पाऊँगा क्योंकि न तो मैं इतना ज्ञानी हूँ और न ही मैं, मेरे प्रभु के जीवन को जान पाया हूँ, ऐसे में ज्ञानियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भगवान श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमान जी ने कृपा की और ऐसी मान्यता है कि रामायण से प्रेरित होकर तुलसीदास जी कुछ लिखते थे तो पवनपुत्र हनुमानजी उनकी त्रुटियों को दूर करते थे तब जाकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन चरित पर "श्री राम चरितमानस"जैसे ग्रंथ का निर्माण संभव हो सका, जो कि अवधी में लिखी हुई है। अत: यह सर्वथा सिद्ध है कि हम सब अहिल्या शिला के समान ही जड़ हैं, जब तक भगवान श्रीराम रूपी चेतना के स्पर्श से हमारी चेतना जागृत न हो जाये तब तक हम सभी को अपनी जड़ चेतना को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने अपनी जड़ चेतना को जागृत करने का सर्व सुलभ एवं सरल प्रक्रिया का प्रतिपादन किया है और वह है भावातीत ध्यान योग। भावातीत ध्यान योग का प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या के समय 15 से 20 मिनट का अभ्यास कर अपनी जड़चेतना को जागृत करने का प्रयास आप कर सकते हैं। जो आपके जीवन में आनंद का प्रसार करेगा।



।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।