संपादकीय

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ब्रह्मचारी गिरीश
संरक्षक संपादक

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जीवन प्रेम, आनंद और उत्साह है। जब उत्सव का पहलू प्रेम, आनंद, ज्ञान के साथ जुड़ जाता है, तो वह जीवन का शिखर होता है। शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप पूज्यनीय है। वह कहता है कि पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं उसका अस्तित्व ही एक दूसरे के होने से है। सामूहिक कल्याण शिव है। अत: सामूहिक कल्याण का प्रचार शिवत्व की महानता से भरा हुआ होता है और इसीलिए आध्यात्मिक गुरु के लिए यह अनिवार्य लक्ष्य है।


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सामूहिक कल्याण

जीवन के तीन पहलू हैं- उत्पत्ति, स्थिति और विनाश। किंतु कठिन है इसको मानना। जब हम परमात्मा को विनाश की शक्ति समझेंगे, तो हमें बहुत अड़चन होगी, क्योंकि हम सदा ही स्रष्टा के साथ, सृजन के साथ परमात्मा को एक समझते हैं। हमारी समझ में आता है कि परमात्मा ने बनाया, पर मिटाएगा भी परमात्मा, यह हमारी समझ में नहीं आता। हम इसको समझना भी नहीं चाहते। अब जो बनाएगा, वही मिटाएगा भी और जो बनने की क्रिया होगी, उसके ही विपरीत मिटने की क्रिया भी होगी। बनना और मिटना, सृजन और संहार, एक ही प्रक्रिया के अंग होंगे। समस्त सृजन, विनाश को उत्पन्न करेगा, और समस्त विनाश नए सृजन को जन्म देगा। यह पवित्र माह अपने बड़ों की और ज्ञान की बातें सुनने और ज्ञान में डूबने का समय है। पार्वती ने इसी महीने शिव की पूजा की थी। उन्होंने शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। यह महीना अपने भीतर जाकर अपने भीतर शिव तत्व से मिलने का समय है। पार्वती शक्ति का एक स्वरूप हैं। शक्ति का अर्थ है- शक्ति, सामर्थ्य और ऊर्जा। शक्ति समस्त सृष्टि का गर्भ है और इसलिए इसे ईश्वर के मातृ रूप के रूप में अभिव्यक्त किया गया है। शक्ति समस्त गतिशीलता, तेज और पोषण का स्रोत है। शक्ति जीवन-शक्ति है, जो जीवन को पोषित करती है। इस दिव्य ऊर्जा शक्ति के विभिन्न कार्यात्मक पहलुओं के अलग-अलग नाम और रूप हैं। शक्ति व्यक्त गतिशीलता है। शिव तत्व अवर्णनीय है। गतिशील अभिव्यक्ति ही शक्ति है। अस्थिरता और स्थिरता दोनों ही शिव हैं। दोनों आवश्यक हैं। जब गतिशील अभिव्यक्ति आंतरिक स्थिरता के साथ मिलती है, तो रचनात्मकता, सकारात्मकता आती है और सत्व उत्पन्न होता है। शिव और पार्वती स्वयं प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक प्रकाश हैं। पार्वती अपनी भूमिकाओं के सम्मान की प्रतिमूर्ति हैं। वे एक आदर्श पुत्री, पत्नी और माँ हैं। वे दाम्पत्य की आदर्श हैं। उत्सव। सत्व से उत्पन्न उत्सवमय पहलू। जब तमोगुण हावी होता है, तो मात्र जड़ता होती है, कोई उत्सव नहीं होता। रजोगुण से उत्पन्न कोई भी उत्सव टिक नहीं सकता। मात्र सत्वगुण में ही हम निरंतर उत्सव में रह सकते हैं। शिव मन, विचार, भावना, भाषण और शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैं। वे जीवन का मार्गदर्शन करने वाले एक अनुकरणीय युगल हैं। कोई युगल भी नहीं कह सकता क्योंकि वे वास्तव में मात्र एक हैं- 'जगत: पितरौ वंदे पार्वतीपरमेश्वरौ।' जब आप अपने भीतर जाते हैं, जब आप स्वयं में स्थित होते हैं, तो आपके चारों ओर आनंद छा जाता है, इसीलिए यह माह त्योहारों से भरा होता है। उत्सव जीवन में आनंद लाते हैं। जीवन प्रेम, आनंद और उत्साह है। जब उत्सव का पहलू प्रेम, आनंद, ज्ञान के साथ जुड़ जाता है, तो वह जीवन का शिखर होता है। शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप पूज्यनीय है। वह कहता है कि पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं उसका अस्तित्व ही एक दूसरे के होने से है। सामूहिक कल्याण शिव है। अत: सामूहिक कल्याण का प्रचार शिवत्व की महानता से भरा हुआ होता है और इसीलिए आध्यात्मिक गुरु के लिए यह अनिवार्य लक्ष्य है। अत: इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित भावातीत ध्यान का नियमित, प्रतिदिन, प्रात: एव संध्या को 10 से 15 मिनट का अभ्यास आपको अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने एवं जीवन में आनंद प्राप्त करने में सहायता प्रदान करेगा।



।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।