महर्षि प्रवाह

ब्रह्मचारी गिरीश जी

महर्षि जी ने वेद, योग और ध्यान साधना के प्रति जन-सामान्य में बिखरी भ्रान्तियों का समाधान कर उनको दूर किया। वैदिक वांङ्गमय के 40 क्षेत्रों- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष, निरुक्त, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त, कर्म मीमांसा, योग, गंधर्ववेद, धनुर्वेद, स्थापत्य वेद, काश्यप संहिता, भेल संहिता, हारीत संहिता, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट संहिता, भावप्रकाश संहिता, शार्ङ्गधर संहिता, माधव निदान संहिता, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण, स्मृति, पुराण, इतिहास, ऋग्वेद प्रातिशाख्य, शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य, अथर्ववेद प्रातिशाख्य, सामवेद प्रातिशाख्य (पुष्प सूत्रम्), कृष्ण यजुर्वेद प्रातिशाख्य (तैत्तिरीय), अथर्ववेद प्रातिशाख्य (चतुरध्यायी) को एकत्र किया, उन्हें सुगठित कर व्यवस्थित स्वरूप दिया और वेद के अपौरुषेय होने की विस्तृत व्याख्या की।


महर्षि जी ने हजारों भावातीत ध्यान के
केन्द्र स्थापित किये, लाखों व्यक्तियों को ध्यान
और पतंजलि योग सूत्रों पर आधारित सिद्धि
कार्यक्रम का प्रशिक्षण दिया। निष्काम कर्मयोग
और ''योगस्थ: कुरू कर्माणि'' का प्रयोग प्रथम
बार किसी ने सम्पूर्ण विश्व को प्रायोगिक रूप में
दिया। इसी क्रम में महर्षि जी ने भगवद् गीता की
व्याख्या भी लिखी जो अपने आप में एक अनूठी
कृति है। लगभग इसी समय में महर्षि जी ने ब्रह्म
सूत्रों की भी व्याख्या की और ''साइन्स ऑफ
बीइंग एण्ड आर्ट ऑफ लिविंग'' नामक पुस्तक
लिखी, जिनका अनुवाद विश्व की अनेक
भाषाओं में हो चुका है और अब तक लाखों
प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। महर्षि जी ने
''चेतना विज्ञान'' की रचना की और उनका ये
चेतना विज्ञान करोड़ों लोगों ने एक पाठ्यक्रम
के रूप में लिया और अपने जीवन के आधार
चेतना को विकसित कर ब्राह्मीय चेतना के स्तर
तक पहुंचे।
महर्षि जी का सत्संकल्प कि मनुष्य जन्म
संघर्ष के लिये नहीं, दु:ख से व्यथित होने के
लिये नहीं है, केवल आनन्द और मोक्ष के लिये
हुआ है, इस सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम
उन्हें लगातार आगे बढ़ाते गये। वेद निर्मित, ज्ञान
शक्ति और आनन्द चेतना के सागर, वेदान्तिक
महर्षि वास्तविक ऐतिहासिक अमर जगतगुरु हो
गये।
महर्षि जी ने विश्व भर में व्याप्त
समस्याओं और संघर्ष की समाप्ति के लिये ''विश्व योजना'' बनाई जिसके प्रमुख उद्देश्यों
में व्यक्ति का पूर्ण विकास करना, प्रशासन की
उपलब्धियों को बढ़ाना, शिक्षा के सर्वोच्च
आदर्शों को स्थापित करना, समाज में प्रचलित
विभिन्न प्रकार के अपराध और
अप्रसन्नताकारक व्यवहार को समाप्त करना,
पर्यावरण का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना,
व्यक्ति के आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति कराना
था। इसके लिये महर्षि जी ने 2000 नये चेतना
विज्ञान के शिक्षक तैयार किये और 2000
'विश्व योजना केन्द्र' स्थापित किये। 'ज्ञान युग'
की स्थापना के लिये महर्षि जी ने विश्व भ्रमण
किया और 'महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी'
प्रथम विश्व विद्यालय की स्थापना
स्विट्जरलैण्ड में करके फिर अनेक वैदिक,
आयुर्वेदिक और प्रबन्धन विश्वविद्यालयों की
स्थापना की।
महर्षि जी ने आदर्श समाज की स्थापना
के लिये विश्वव्यापी अभियान चलाया और
108 देशों में 'योगिक उड़ान' का अभ्यास करने
वाले समूह भेजे। इन देशों के वैज्ञानिकों ने और
सरकारों ने यह पाया कि बड़ी संख्या में
सामूहिक ध्यान अत्यन्त प्रभावी होता है। किसी
भी राष्ट्र की जनसंख्या का एक प्रतिशत यदि
सामूहिक भावातीत ध्यान करे तो सामूहिक
चेतना में सतोगुण की अभिवृद्धि होकर रजोगुणी
और तमोगुणी नकारात्मक चेतना का शमन
होता है। वैज्ञानिकों ने इसे 'महर्षि प्रभाव' का
नाम दिया।
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