अनुक्रमणिका
पृष्ठ क्र. 6

महर्षि जी का सत्संकल्प कि मनुष्य जन्म संघर्ष के लिये नहीं, दु:ख से व्यथित होने के लिये नहीं है, केवल आनन्द और मोक्ष के लिये हुआ है, इस सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम उन्हें लगातार आगे बढ़ाते गये। वेद निर्मित, ज्ञान शक्ति और आनन्द चेतना के सागर, वेदान्तिक महर्षि वास्तविक ऐतिहासिक अमर जगतगुरु हो गये।
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पृष्ठ क्र. 8

आज की शिक्षा व्यावहारिक नहीं है। वह समाज से नहीं जुड़ी, व्यक्ति के जीवन से नहीं जुड़ी और न सामान्य व्यवहार की समझ से जुड़ी है। शिक्षा को व्यावहारिक बनाना पड़ेगा। शिक्षा के इस पक्ष के संबंध में विनोद में एक बात कहता हूँ कि आज-कल कोई भी समस्या हल करनी हो तो पहले सर्वेक्षण करा लीजिए। उससे समस्या सही रूप में समझ में आ जाएगी और उसका समाधान भी निकल आएगा।
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पृष्ठ क्र. 10

वेदों में प्रकृति का महत्व प्रतिपादित किया गया है। इसमें कहा गया है कि मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुसार प्रकृति का दोहन कर सकेगा। साथ ही उसका यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्रकृति का संरक्षण करेगा परंतु कालांतर में मनुष्य ने अपनी भौतिक आवश्यकताओं और विलासितापूर्ण जीवन के कारण प्रकृति के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया।...
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पृष्ठ क्र. 42

''रंग से राम सुन्दर लगते है'' इसके स्थान पर भक्त कहता है कि राम इतने सुन्दर हैं कि जिस रंग को स्वीकार कर लें वही जगमगा उठे। राम के रूप ने श्यामता को भी सुन्दर बना दिया। राम की श्यामता एक रंग मात्र ही नहीं, वह चैतन्य की दिव्य और अलौकिक आभा है जो उनके जीवन के हर क्षण में उन्हें अलौकिक करती है आश्वासन देती है, आह्लाद का आस्वादन और वितरण कराती है। राम का अनिर्वचनीय रूप (सौन्दर्य) पार्थिक जगत के ऊपर उठकर विराट से एकाकार कर देता है।...
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